महेन्द्र सिंह धोनी... उदय और अस्त
दो पल ख़ास होते हैं। एक जब उदय होता है और दूसरा जब अंत आता है।
इन दो कड़ियों के बीच पूरा जीवनकाल चलता है। वह काल जिसकी गणना तब होती है जब अंत क़रीब होता है। प्रकृति का नियम है कि उत्पत्ति और अंत निश्चित है। उत्पत्ति पर किसी का वश नहीं चलता लेकिन अंत कैसा हो इसकी सारी ज़िम्मेदारी आपके हाथों में होती है।
प्रकृति का नियम यह भी कहता है कि एक शिखर को पाकर शून्य की ओर लौट आना ही होता है। ऐसी ही स्थिति अब धोनी की हो गई है। धोनी की टीम जिसे चेन्नई सुपर किंग्स कहा जाता है। धोनी इस टीम के किंग थे। 2008 से लेकर 2019 तक धोनी ने इस टीम को अपने अनुभवों से सींचा। हर किसी पर दाव लगाया। जिसे भी छुआ हीरा बना दिया।
2020 वह साल रहा जिसने दुनिया का उन चीज़ों से सामना कराया जो अकल्पनीय रहा। कुछ ऐसा ही इस किंग के साथ भी हुआ। यूँ तो मैं चेन्नई का बड़ा फैन नहीं रहा लेकिन माही की यह खूबी थी कि ना चाहने वाला भी उनको चाहने लगता था। यह बात किसी चाहत की नहीं है। लेकिन जब इस ख़बर से सामना हुआ कि धोनी की टीम अब आईपीएल से बाहर हो गई है तो एक झटका ज़रूर लगा।
धोनी की तस्वीरें सामने आने लगीं। मैच के बाद युवा खिलाड़ियों से मिलकर उन्हें अपनी जर्सी देना ये एहसास करा रहा था जैसे कोई राजा अपनी सल्तनत वारिसों को सौंप रहा हो। एक पूरी बादशाहत, क्रिकेट का अजातशत्रु आज अपनी बादशाहत छोड़ रहा हो। बादशाहत ऐसी थी कि टक्कर का कोई ना था। हर चाल दुश्मनों को मात देने के लिए होती थी। जब सारे सिपाही हार मान लेते तो बादशाह बाहर आता और अपनी बादशाहत का फिर लोहा मनवा लेता था।
साल दर साल बादशाहत शिखर को स्पर्श करती रही लेकिन फिर वक़्त का पहिया ऐसा घूमा कि वह शिखर अब यादों के पन्नों पर अपना हस्ताक्षर कर धरातल की ओर लौट आया है। अब वही दाव उल्टे पड़ने लगे हैं। कोई लुटा हुआ रजवाड़ा भी बादशाहत में सेंध लगाने लगा है। खोई हुई बादशाहत को एक अंत मिल गया है। धोनी अब हर तरह के क्रिकेट से दूर होने वाले हैं।
लेकिन ये समय का पहिया फिर घूमेगा। आज जो धरातल पर है वह कल शिखर पर फिर पहुंचेगा। फिर नई बुलंदी होगी। चारों ओर फिर नाम होगा। हां, लेकिन उन नामों में धोनी सबसे ऊपर होगा। चेन्नई फिर लौटेगी। नई सोच के साथ ‘धोनी’ फिर लौटेगा।
- शशांक शेखर
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