''ये शहर हमें जितना देता है, बदले में कहीं ज्यादा हमसे ले लेता है''


'आप जिस्म हैं तो मैं रूह, आप फानी हैं तो मैं लफानी' फिल्म हैदर का ये डायलॉग अचानक किसी तीर की तरह चुभा जब इरफान खान की मौत की खबर आई। पिछले दो साल से वो अपनी बीमारियों से लड़ रहे थे और आज अचानक कुछ समय के लिए वक्त ठहर गया। हर वो सीन नजरों के सामने आने लगा जिसे इरफान ने अपनी बेमिसाल अदाकारी से संजोया था। बॉलीवुड में कई कलाकार आए और चले गए लेकिन भारतीय सिनेमा की रूह बनने का सौभाग्य तो बस इरफान को मिला।

'इरफान' ये नाम इस कलाकार को यूं ही नहीं मिला। इस शब्द के अर्थ की तरह ही उन्होंने अपनी जिन्दगी जी। ज्ञान, तमीज, विवेक, ब्रम्हज्ञान ये सब इरफान के मतलब होते हैं। और हर एक अर्थ इस कलाकार को पूर्ण करता है। ये सच है कि एक जिद्दी इंसान ही आज के समय में अपनी मेहनत से आसमान की बुलंदियों को छू सकता है।

राजस्थान के टोंक में जन्मे इरफान की ज़िद एक क्रिकेटर बनने की थी। क्रिकेट की बारीकियों को सीखते सीखते इरफान पहली मंजिल तक पहुंच गए थे। सीके नायुडू अंडर 23 क्रिकेट टूर्नामेंट में उनका चयन भी हो गया था लेकिन किस्मत में कुछ और ही लिखा था। उस बुनियादी रकम से इरफान पीछे रह गए जिसके सहारे वो अपने क्रिकेट करियर को आगे बढ़ा पाते।



कहते हैं हर किसी की किस्मत लिखी होती है और इरफान की किस्मत में कलाकार बनना लिखा था। 1984 में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से अदाकारी सीखने के साथ इरफान का संघर्ष शुरू हो गया। टीवी की दुनिया में उन्हें छोटे-छोटे रोल मिलते गए और वो उसे अपनी कलाकारी से बड़ा बनाते गए। चाणक्य, भारत एक खोज  और चंद्रकांता जैसे सीरियल ने उन्हें नाम दिया लेकिन पहली बड़ी पहचान मिली मीरा नायर की 'सलाम बॉम्बे' से।

1988 में आई इस फिल्म को देखने के बाद शायद ही किसी ने सोचा होगा कि एक दिन बॉम्बे(मुंबई) ही नहीं पूरा सिनेमाइ जगत उन्हें सलाम करेगा। इरफान पहले ऐसे कलाकार होंगे जिन्होंने कैरेक्टर को नहीं बल्कि उसकी संजीदगी को देखा। नकारात्मक किरदार को भी उन्होंने इस खुबसूरती से पेश किया कि एक खलनायक फिल्म का नायक बन कर सामने आया।

कामयाबी की सीढ़ी चढ़ते चढ़ते इरफान भारतीय सिनेमा के अब तक सर्वश्रेष्ठ कलाकार में शामिल हो गए। हर फिल्म में इनकी अदाकारी पिछले से बेहतर होती गई। कई निर्देशक उन्हें भारत में जन्मा सर्वश्रेष्ठ अभिनेता तक करार दे चुके हैं।

बॉलीवुड ही नहीं हॉलीवुड तक ने इरफान की अदाकारी को सलाम किया। लेकिन उनके ही शब्दों में कहें तो - ''ये शहर हमें जितना देता है, बदले में कहीं ज्यादा हमसे ले लेता है।'' (फिल्म लाइफ इन ए मेट्रो)

सिनेमाई जगत में कई ऐसे कलाकार हैं जिनके चुनिंदा फिल्मों की ही बात होती है। लेकिन इरफान ऐसे कलाकार हुए जिनकी किसी भी फिल्म को आप उनसे अलग नहीं कर सकते। हर फिल्म इस कलाकार के 'इरफान' होने का सबूत देती है।

अलविदा इरफान -  आप थे, आप हैं और आप ही रहेंगे।

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